समय परिवर्तन कथा - बोधिसत्व

समय परिवर्तन कथा - बोधिसत्व 
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इस कथा के माध्यम से हम आपको ये बताएँगे की बुद्ध के उपदेशो से किस प्रकार मनुष्य का ह्रदय सात्विकता की और अग्रसर हो गया।ये तो हम सब ही जानते है की बुद्ध एक दिव्य पुरुष थे। उनके उपदेशो ने समस्त मानव समाज का मार्गदर्शन किया और अनवरत आज भी कर रहे है। 

एक समय की घटना है जब उंगली माल डाकू जो की भगवान बुद्ध का अनुयाई बन गया था और भगवान बुद्ध ने अपना शिष्य बनाने के बाद उसका नाम अहिंसक रख दिया था तब एक दिन अहिंसक एक घने वन से निकल रहा था। उस घने वन में अहिंसक को एक गाड़ी दिखी जिसमें एक गर्भवती महिला पीड़ा से पीड़ित थी।  उसे पीड़ा हो रही थी ,उस पीड़ित महिला को देखकर अहिंसक के मन में करुणा जाग उठी। उसने उस महिला को देख कर कहा कि हे माता तुम्हे क्या पीड़ा है।  तब उस स्त्री ने कहा कि मैं गर्भवती हु और किसी भी समय बालक का जन्म हो सकता है परन्तु मैं प्रसव पीड़ा से पीड़ित हु  ,मुझसे यह पीड़ा सेहेन नहीं हो रही। 
उस स्त्री कि इस दशा को देखकर अहिंसक तत्काल भगवान बुद्ध के पास गए और उनसे उस महिला की पीड़ा को दूर करने का उपाय पूछा तो भगवान बुद्ध ने कहा की हे अहिंसक यदि वास्तव तुम्हारे मन में उस देवी के लिए करुणा जाग उठी है और तुम उस की पीड़ा को दूर करना चाहते हो तो आज तक तुमने अपने जीवन में जितने भी पुण्य कर्म किए हैं उन समस्त पुण्य  कर्मों का फल उस महिला को दान कर दो इस से उस महिला की  पीड़ा तत्काल दूर हो जाएगी।
बुद्ध की बात को सुनकर अहिंसक ने कहा की हे बुद्ध मैंने तो आज तक अपने जीवन में केवल पाप कर्म ही किए हैं मैंने कोई पुंय कर्म नहीं किया और यदि मैं अपने पाप कर्मों का फल उस महिला को दान कर दूं तो वह महिला निश्चित ही मर जाएगी किंतु मैं उस महिला को बचाना चाहता हूं उसको प्रसव पीड़ा से बचाना चाहता हूं उसके पीड़ा को दूर करना चाहता हूं इसके लिए हे बुद्ध मुझे कोई उपाय बताइए ताकि मैं उस महिला की पीड़ा को दूर कर उस महिला और उसके होने वाले शिशु की रक्षा कर सकू।उसकी करुणा को देख कर बुद्ध ने कुछ विचार किया। 
तब बुद्ध ने कहा  की हे अहिंसक तुम्हारे मन में आज करुणा जाग उठी है और तुम उस अजन्मे शिशु और उस महिला को बचाना चाहते हो तो ठीक है तुमने अपने जीवन में जो भी पाप किए उन पापों को तुमने अपने जीवन के पूर्व काल में किया किंतु जब से तुम मेरे शिष्य बने ,जब से तुम बुद्धत्व को प्राप्त हुए तब से तुमने कोई पाप कर्म नहीं किया। बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद तुम्हारा एक नया जन्म हुआ और अपने नए जन्म में तुमने जितने भी अच्छे कर्म किए हैं उन सारे अच्छे कर्मों का फल तुम उस महिला को दान करो तुम अपने मन में यह संकल्प करो कि हे परमात्मा अपने नए जन्म के पश्चात जब से मैं बोधिसत्व प्राप्त किए हुए बुद्ध की शरण में आया तब से आज तक मैंने जितने भी अच्छे कर्म किए हैं उन समस्त कर्मों का फल उस महिला को दान करता हूं। इस से इस महिला की समस्याओं को दूर कर इस महिला और उसके होने वाले शिशु की रक्षा हो सके हे परमेश्वर कृपा करें।
अहिंसक ने वैसा ही किया जैसा भगवान बुद्ध ने उससे कहा था।  अहिंसक उस प्रसव पीड़ा संयुक्त स्त्री के पास गया और उसने उस स्त्री के सामने खड़े होकर इश्वर से प्रार्थना की कि हे परमेश्वर बुद्ध की शरण में आने के पश्चात मैंने अपने जीवन में जो भी सत्कर्म किये उन समस्त सत्कर्मों का जो भी पुण्य प्राप्त हो वह समस्त पुण्य इस महिला को प्रदान हो जिससे इस महिला की प्रसव पीड़ा दूर हो सकें और महिला के बालक का जन्म पीड़ा रहित हो सके। अहिंसक ने देखा कि भगवान बुद्ध के द्वारा बताए गए उपाय से अपने पुण्य कर्मों का फल उस महिला को दान करके जब अहिंसक हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था उसी समय उस महिला की प्रसव पीड़ा तत्काल दूर हो गई और उसके बच्चा भी पीड़ा रहित रूप से जन्म ले चुका था। अहिंसक ने देखा कि बुद्ध के उपदेश से आज बुद्ध के द्वारा बताए गए उपाय से उसके द्वारा एक पुण्य कर्म हो गया और एक महिला की प्रसव पीड़ा दूर हो सकी और एक बालक का जन्म पीड़ा रहित हो सका। इस प्रकार हम सब ने इस कहानी से जाना कि बुद्ध के उपदेश मानव जीवन को जीने में प्रेरणा का स्रोत है। 

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