जैसी नज़र वैसा असर
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मनुष्य को सदा क्रिया शील स्वभाव का होना चाहिए। क्रियाशील कामतलब उसे निराशावादी नहीं होना चाहिए। उसे ये सोचना चाहिए की क्या काम शेष रह गया है परतु उन कार्यो में अपनी बुद्धि लगता है जो कार्य पूर्ण हो चुके है। इस प्रकार मनुष्य अपना समय बर्बाद कर लेता है और बाद में पछताता है। हम यह भी कह सकते है की "जैसी नज़र वैसा असर" होता है।
जैसे जब हम किसी तीर्थ स्थान पे जाते है तो कुछ लोगो को वह पर बहुत गन्दगी नज़र आती है। चारो तरफ कूड़ा करकट नज़र आता है परन्तु कुछ लोग ऐसे होते है जिन्हे उस तीर्थ स्तन में सिर्फ भगवान् ही नज़र आता है। उन्हें वहाँ की मिटटी भी परम पवित्र लगती है क्योकि उनकी भावना में सकारात्मकता का निवास होता है और वो अच्छे नज़रिये वाले होते है।
ऐसे प्राणी कभी दूसरो में दोष नहीं देखते बल्कि जब भी दोष देखने का उनका मन करता है तो वो खुद अपने दोषो को देखते है उन्हें दूर करने का प्रयास करते है।
बुद्ध कहते है की न ये दुनिया बुरी है और न इस दुनिया का कोई प्राणी बुरा है। बुराई और अच्छाई ये तो हम सबका देखने का नजरिया है। इसलिए अपनी नज़र और नज़रिये दोनों को शुद्ध और साफ़ रखो जिससे की हमें इस संसार की वास्तविक सुंदरता नज़र आये। अगर आपके विचार शुद्ध होंगे तो आपका मन प्रसन्न होगा और आगर आपका मन प्रसन्न होगा तो आप सदा स्वस्थ रहेंगे और खुश रहेंगे। जब हम स्वयं अच्छे विचारो को सोचने लगते है तब स्वयं अच्छे बनते चले जाते है और आपकी अच्छी सोच से समस्त संसार आपकी ओर आकर्षित होकर आपके पास चला आता है। जब हम किसी बुरे विचार की गिरफ्त में नहीं होते तब हमें परम शांति का अनुभव होता है। इसीलिए बुद्ध को शांति दूत मन जाता है आज पुरे विशव के लोग बुद्ध के उत्तम विचारो को अपना चुके है और बुद्ध का अनुसरण करते है। या यु कहे की उन्होंने बुद्ध को ही अपना पथ प्रदर्शक मान लिया है।
अतः हम सबको हम सबको में जाना चाहिए और उनके उपदेशो को समझ के अपने जीवन में उनका अनुसरण करना चाहिए।
Nice thought कांशीराम जी का अन्तिम उद्देश्य
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