गौतम बुद्धा का आलौकिक ज्ञान


               गौतम बुद्धा का आलौकिक ज्ञान 

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भगवन बुद्धा ने एक साधारण मानव के रूप  जनम लिया और ये सिद्ध किया की कोई भी साधारण मनुष्य बोधिसत्व को प्राप्त कर सकता है बस उसमें बोधिसत्व को प्राप्त करने की पूर्ण इच्छा होनी चाहिए। आज पुरे विश्व में अलग अलग धर्म के लोग रहते है  पर उसके  बाद भी  पूरी दुनिया की एक तिहाई आबादी भगवान् बुद्ध को मानती है। 
सोचने की बात तो ये है की भगवान् बुद्ध अपने सम्पूर्ण जीवन में  भारत और नेपाल को छोर के किसी अन्य देश में नहीं गए अर्थात नेपाल में जन्म हुवा पर उसके बाद वे अपनी कर्मभूमि भारत से बाहर कभी नहीं गए। पर उसके बाद भी आज पुरे विश्व में बुद्ध की शांति के  सन्देश ही गूंजते है। 
क्या ये चमत्कार है ? या बुद्ध की वाणी का प्रभाव ? या गौतम बुद्ध का ज्ञान ?
सच कहे तो बुद्ध संसार में इसलिए लोकप्रिय होते गए क्योकि उन्होंने मानव को उस  वास्तविक सत्य से अवगत करवाया की मनुष्य के दुखो का प्रमुख कारण क्या है और उसके निवारण का मार्ग क्या है। 
जब ३० वर्ष की आयु में बुद्ध ने अपना घर त्यागा था उस वक़्त उनके मन में ये प्रमुख  जिज्ञासा थी की मनुष्य के दुखो का मूल कारण क्या है?
बुद्ध ने घर त्यागा। संन्यास लिया , तप किया ,तत्पश्चात 6 साल बाद गया में एक पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हो गयी और वे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन गए। उनका जन्म  पूर्णिमा को हुवा  , पूर्णिमा के दिन ही सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुवा और वो बुद्ध बन गए ,और पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध ने महापरिनिर्वाण लिया। इसलिए पूर्णिमा का विशेष महत्व मानते हुवे पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाने लगा। 

गौतम बुद्धा ने अपने जीवन का प्रथम उपदेश अपने ५ शिष्यों को सारनाथ में दिया था। भगवान् बुद्ध ने कहा की मनुष्य के जीवन में  दुःख का कारण सिर्फ एक है की मनुष्य या तो अतीत में जीता है  या भविष्य में जीता है परन्तु वह  वर्तमान में नहीं जीता। अगर दुखो से छुटकारा चाहिए तो ये मान कर चलो की  जो है सिर्फ आज है और अभी है। अपना आज सुधार लो आने वाला कल अपने आप सुधर जाएगा। 

बौद्ध धर्म के अनुयायी  बुद्ध की पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण करते है -
"बुद्धम शरणम् गच्छामि ,
धम्मं शरण म् गच्छामि ,
संघम शरणम् गच्छामि "
बुद्ध ने जो ज्ञान दिया वह वास्तविक ज्ञान था और  व्यवहारिक था ना की किताबी। इसलिए बुद्धा को भगवान् का रूप मानकर उनकी पूजा होने लगी क्योकि लोगो ने उन्हें गुरु रूपी भगवान् माना।

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