जो है बस आज है -भगवान् बुद्ध

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जो है बस आज है -भगवान् बुद्ध
गौतम बुद्ध ने कहा है कि: 
मनुष्य को अपने लक्ष्य को पाने से ज़्यादा अपनी यात्रा पर ध्यान देना चाहिए।
जीवन में शांति और खुशी चाहिए, तो कभी भी भूतकाल और भविष्य काल में न उलझें।
जीवन में हज़ारों लड़ाइयां जीतने से बेहतर स्वयं पर विजय प्राप्त करना है।
सत्य की राह पर चलने वाला मनुष्य जीवन में दो ही गलतियां कर सकता है।

गौतम बुद्ध के कुछ और उपदेश: 

  • लाखों शब्दों के बीच एक शब्द आपको शांति दे जाता है।
  • हजारों लड़ाइयां जीतने से बेहतर स्वयं पर विजय प्राप्त करना है।
  • स्वयं पर विजय प्राप्त कर लिया तो फिर जीत हमेशा तुम्हारी होगी।
  • गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध के नाम, गोत्र और कार्यों में काफी हद तक समानता पाई जाती है। लेकिन गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु के दशावताओं (दस अवतार) में नौंवा अवतार माना जाता है।
बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा गौतम बुद्ध ने एक दिन अचानक घर-गृहस्थी का त्याग कर दिया। सांसारिक और पारिवारिक मोह-माया का त्याग कर वे जंगल की ओर चले गए। बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीच करीब छह सालों तक तप किया और इस तरह उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।
बुद्ध अपने शांति उपदेशो के लिए समस्त संसार में जाने जाते है। भगवान बुद्ध ने अपने अवतरण कार्य में लाखों उपदेशों को देकर समस्त मानव जाति का कल्याण किया। आज जब हम भगवान बुद्ध के उपदेशों को सुनते हैं तो हमें यह महसूस होता है कि उनके जितने भी उपदेश थे वह कहीं लिखे हुए किताबी उपदेश नहीं थे। बल्कि उन्होंने अपने उपदेशो में उन चीजों को शामिल किया जो उनके वास्तविक अनुभव के आधार पर उनके सामने उनके जीवन में प्रकट हुई। उन्होंने अपने व्यक्तित्व में जो चीजें महसूस कि उन्ही सब सिद्धांतो को  वे संसार को समझाना चाहते थे। 
बुद्ध ने अपने ज्ञान को संसार में बाँट के संसार के अज्ञान के अन्धकार को दूर किया। इसीलिए उन्होंने अपना राज-पाठ छोड़ा और अपने वैभव पूर्ण जीवन को छोड़कर सन्यास ग्रहण किया क्योंकि भगवान बुद्ध की नजरों में समस्त मानव जाति, समस्त पशु-पक्षी और संसार में विचरण करने वाले प्रत्येक जानवर सब उनकी दृष्टि में एक समान थे। वह किसी को दुखी नहीं देख सकते थे। 

बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति 

बुद्ध का ह्रदय करुणा से भरा हुवा था। उनमे समस्त संसार के प्रति समान भाव था। उनकी दृष्टि सब पर समान भाव से पड़ती थी। अपने सन्यास काल के दौरान जब बुद्ध तपस्या कर रहे थे तब बोधगया में ध्यान करते समय एक पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें बोधिसत्व अर्थात (ज्ञान) प्राप्त हुवा। जब उन्होंने ज्ञान को प्राप्त किया तब उन्हें पता चला कि मनुष्यों के दुखों का प्रमुख कारण क्या है। 

दुःख का कारण 

भगवान् बुद्धा ने अपने जीवन के प्रथम उपदेश में ये बात स्पष्ट रूप से समझाई की मनुष्यो के जीवन में उनके दुखो का प्रमुख कारण क्या है।  उन्होंने कहा की मनुष्य सदैव ही अपने भूतकाल या भविष्य कॉल में जीता है, वो कभी भी अपने वर्तमान में नहीं जीता और यही उसके दुखो का प्रमुख कारण है।
मनुष्य को यदि दुखो से मुक्ति पानी है तो केवल एक उपाय है की उसको अपने वर्त्तमान में जीना चाहिए अर्थात मनुष्य को अपने वर्त्तमान पे अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
यदि आपका वर्तमान सवर गया तो भविष्य अपने आप सवर जाएगा और रहा सवाल भूतकाल का तो उसे आप कभी भी नहीं बदल सकते अर्थात चाह कर भी बीते हुवे समय को नहीं बदला जा सकता। इसलिए उसके बारे में सोचना व्यर्थ है।
बुद्ध के उपदेशो में दूसरी सबसे प्रमुख बात यह रही की बुद्ध ने इस बात को स्पस्ट रूप से कहा की किसी दूसरे पे क्रोध करके हम केवल अपनी ही शक्ति नस्ट करते है। इसलिए दुसरो की गलतियों को माफ़ करना सीखिए। इससे दो बातो का फायदा होगा।
प्रथम फायदा ये होगा की अपनी शक्ति दूसरे पे क्रोध करने से नस्ट नहीं होगी और दूसरा फायदा ये होगा की हम अपने कीमती समय को क्रोध करने के अलावा किसी अच्छे कार्य में लगा सकते है जिससे हमारी प्रगति हो सके। हमारी अध्यातिक उन्नति हो सके। 
"जो है सो आज है ,अभी है,इसी समय है।" बुद्ध सदा से अपने इसी सिद्धांत को मानते आये और अपने हर उपदेश में उन्होंने इस बात का समर्थन भी किया। 

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